२.२२ – वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ <<अध्याय २ श्लोक २१ श्लोक वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।तथा शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि संयाति नवानि देही ॥ पद पदार्थ नर: – मनुष्ययथा – जिस प्रकारजीर्णानि वासांसि – पुराने एवं फटे हुए कपड़ों कोविहाय – त्यागकरअपराणि नवानि ( वासांसि) – नये … Read more