१५.३ – अश्वत्थम् एनं सुविरूढमूलम् एवं & १५.३.५ – तत: पदं तत्परिमार्गितव्यं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक २.५ श्लोक अश्वत्थमेनं  सुविरूढमूलम्  असङ्गशस्त्रेण दृढेन  छित्वा || तत: पदं तत्परिमार्गितव्यं  यस्मिन् गता  न निवर्तन्ति भूय: | पद पदार्थ एनं – पहले समझाया गयासुविरूढमूलम् – गहराई से स्थिर जड़ वालेअश्वत्थम् – पीपल वृक्ष (अर्थात, संसार)दृढेन – दृढ़ (अच्छे ज्ञान होने … Read more

१५.२.५ – न रूपम् अस्येह तथोपलभ्यते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक २ श्लोक न रूपमस्येह तथोपलभ्यते नान्तो  न चादिर्न च संप्रतिष्ठा  | पद पदार्थ अस्य – इस वृक्ष कारूपम् – पूर्वकथित रूपइह – इस सांसारिक लोक में संसारियों (भौतिकवादी लोगों) द्वारातथा न उपलभ्यते – नहीं समझा जाता है , जैसा कि … Read more

१५.१.५ – अधश्चोर्ध्वं च प्रसृतास्तस्य शाखा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक १ श्लोक अधश्चोर्ध्वं च प्रसृतास्तस्य शाखा गुणप्रवृद्धा विषयप्रवाला: | पद पदार्थ तस्य – उस वृक्ष कीशाखा:- (कुछ और) शाखाएँगुणप्रवृद्धा: – सत्व, रजस ,तमस जैसे गुणों से पोषितविषयप्रवाला: – अंकुरित होना शब्दं (ध्वनि ) जैसे इन्द्रिय वस्तुओं सेअधश्च च उर्ध्वं च … Read more

१५.२ – अधश्च मूलान्यनुसंततानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १५ श्लोक १.५ श्लोक अधश्च मूलान्यनुसंततानि कर्मानुबन्धीनि  मनुष्यलोके  || पद पदार्थ (इस भौतिक क्षेत्र के लिए जो एक वृक्ष है)अध: मनुष्य लोके च – मनुष्य लोक (पृथ्वी) में, जो नीचे हैकर्मानुबन्धीनि – कर्म का बंधनमूलानी – जड़ेंअनुसंततानि – फैले हुए हैं सरल … Read more

१५.१ – ऊर्ध्वमूलम् अधश्शाखम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ .<< अध्याय १४ श्लोक २७ श्लोक श्री भगवान उवाच ऊर्ध्वमूलम्  अधश्शाखम्  अश्वत्थं प्राहुरव्ययम् |छन्दांसि  यस्य पर्णानि यस्तं  वेद स वेदवित् || पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – श्री भगवान बोले(यम्) अश्वत्थं – वह संसार जो एक पीपल के वृक्ष की तरह हैउर्ध्व मूलम् – … Read more

अध्याय १५ – पुराण पुरुषोत्तम योग या आदि आत्मा की उत्कृष्टता का मार्ग

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः << अध्याय १४ >> अध्याय १६ आधार – http://githa.koyil.org/index.php/15/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

१४.२७ – ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक २६ श्लोक ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहम् अमृतस्याव्ययस्य  च |शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च || पद पदार्थ हि – ऐसा इसलिए है, क्योंकिअहम् – मैंअमृताय – अमरअव्ययस्य च – अविनाशीब्रह्मण: – आत्म-साक्षात्कार काप्रतिष्ठिता – साधन;शाश्वतस्य धर्मस्य च (प्रतिष्ठा) – साथ ही, मैं … Read more

१४.२६ – माम् च योऽव्याभिचारेण

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक २५ श्लोक माम् च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते |स गुणान्  समतीत्यैतान्  ब्रह्मभूयाय कल्पते || पद पदार्थ य:- जो व्यक्तिमां – मुझेअव्यभिचारेण भक्ति योगेन च – अन्य देवताओं और लाभों पर ध्यान केंद्रित न करते (अंगों सहित) भक्ति योग सेसेवते – पूजा … Read more

१४.२५ – मानावमानयो: तुल्य:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक २४ श्लोक मानावमानयो: तुल्य: तुल्यो मित्रारिपक्षयो: |सर्वारम्भपरित्यागी  गुणातीत: स उच्यते || पद पदार्थ मानावमानयो: तुल्य: – जब अन्य लोग सम्मान और अपमान करें तो समान व्यवहार करता हैमित्र अरि पक्षयो: तुल्य: – मित्रों और शत्रुओं के साथ समान व्यवहार करता … Read more

१४.२४ – समदु: खसुख: स्वस्थ:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक २३ श्लोक समदु:खसुख: स्वस्थ: समलोष्टाश्मकाञ्चन: |तुल्यप्रियाप्रियो धीर: तुल्यनिन्दात्मसंस्तुति: || पद पदार्थ सम दु:ख सुख:- (वह) जो दुःख और सुख को समान समझता हैस्वस्थ:- जो केवल आत्मा (स्वयं) में ही लगा हुआ हैसम लोष्टाश्म काञ्चन: – जो मिट्टी, पत्थर या सोने … Read more