१८.६४ – सर्वगुह्यतमं भूयः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ६३ श्लोक सर्वगुह्यतमं भूय: श्रुणु मे परमं वच: |इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् || पद पदार्थ सर्व गुह्यतमं – भक्ति योग जो इन सभी रहस्यों में अति गोपनीय हैमे – मेरापरमं वच: – सर्वोच्च वचनभूय: श्रुणु – फिर से … Read more

१८.६३ – इति ते ज्ञानम् आख्यातम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ६२ श्लोक इति ते ज्ञानम् आख्यातं गुह्याद् गुह्यतरं मया |विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु || पद पदार्थ इति – इस प्रकारगुह्याद् गुह्यतरं – रहस्यों में सबसे गुप्तज्ञानं – ज्ञान (मुक्ति प्रदान करने वाला)ते – तुम्हेंमया – मेरे द्वाराआख्यातं – समझाया गया;एतत् – यहअशेषेण … Read more

१८.६२ – तम् एव शरणं गच्छ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ६१ श्लोक तमेव  शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत |तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् || पद पदार्थ भारत – हे भरत कुल के वंशज!तम् एव – परमेश्वर का (मेरा)सर्वभावेन – सभी प्रकार सेशरणं गच्छ – अनुसरण करो;तत् प्रसादात् – उनकी कृपा सेपरां शान्तिं … Read more

१८.६१ – ईश्वर: सर्वभूतानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ६० श्लोक ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन  तिष्ठति |भ्रामयन्  सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया || पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन!ईश्वर: – वासुदेव जो सभी को नियंत्रित करते हैंसर्व भूतानां हृद्देशे – सभी प्राणियों के हृदय में (जो ज्ञान का मूल है)यन्त्रारूढानि – शरीररूपी … Read more

१८.६० – स्वभावजेन कौन्तेय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ५९ श्लोक स्वभावजेन कौन्तेय निबद्ध: स्वेन  कर्मणा |कर्तुं  नेच्छसि  यन्मोहात्  करिष्यस्यावशोऽपि तत् || पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्ती पुत्र!स्वभावजेन – तुम्हारे पूर्व कर्मों के कारणस्वेन कर्मणा – वीरता जो तुम्हारा कर्म हैनिबद्ध: – बद्ध होनेके कारणअवश : – तुम्हारे … Read more

१८.५९ – यद्यहङ्कारम् आश्रित्य 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ५८ श्लोक यद्यहङ्कारम् आश्रित्य  न योत्स्य इति मन्यसे |मिथ्यैष  व्यवसायस्ते प्रकृतिस्त्वां नियोक्ष्यति || पद पदार्थ अहङ्कारम् आश्रित्य – यह मानते हुए कि “मैं स्वयं अच्छे और बुरे का निर्णय कर सकता हूँ” (मेरे आदेश का उल्लंघन करके)न योत्स्य इति – … Read more

१८.५८ – अथ चेत्तत्वम् अहङ्कारान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ५७.५ श्लोक अथ चेत् त्वम्  अहङ्कारान् न  श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि   || पद पदार्थ अथ – अन्यथात्वम् – तुमअहङ्कारान् – अपने आप को सर्वज्ञ मानने के अभिमान मेंन श्रोष्यसि चेत् – यदि तुम मेरी बात नहीं मानोगेविनङ्क्ष्यसि – नष्ट हो जाओगे … Read more

१८.५७.५ – मच्चित्त: सर्वदुर्गाणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ५७ श्लोक मच्चित्त: सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात् तरिष्यसि |पद पदार्थ मच्चित्त: – अपना मन मुझमें रखकर (यदि तुमने सभी कर्म पूर्व वर्णित अनुसार किए हो )सर्व दुर्गाणि – सभी बाधाएँ जो तुम्हें इस संसार (भौतिक क्षेत्र) में बांधतें हैंमत्प्रसादात् – मेरी कृपा … Read more

१८.५७ – चेतसा सर्वकर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ५६ श्लोक चेतसा सर्वकर्माणि मयि संन्यस्य मत्पर: |बुद्धियोगम् उपाश्रित्य मच्चित्त: सततं भव || पद पदार्थ चेतसा – इस विचार के साथ (कि आत्मा मेरी है, और वह मेरे द्वारा नियंत्रित है)सर्व कर्माणि – सभी कर्मों कोमयि संन्यस्य – मुझे अर्पण … Read more

१८.५६ – सर्वकर्माण्यपि सदा 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ५५ श्लोक सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्वयपाश्रय: |मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम् || पद पदार्थ सर्व कर्माणि अपि – सभी काम्य कर्मों (परिणाम की आशा के साथ किए गए कार्य)मद्वयपाश्रय: – कर्तापन आदि मेरे प्रति समर्पित करनासदा कुर्वाण: – जो सदैव कर्म करता … Read more