१८.५५ – भक्त्या माम् अभिजानाति
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ५४ श्लोक भक्त्या मामभिजानति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः |ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम् || पद पदार्थ य: – मैं जो ऐसे स्वभाव और मनोभाव का हूँयावान् च अस्मि – मुझमें जो ऐसी गुण और धन हैमां – ऐसा मुझेभक्त्या – (पूर्व … Read more