११.८ – न तु माम् शक्ष्यसे द्रष्टुम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

न तु मां शक्ष्यसे द्रष्टुं अनेनैव स्वचक्षुषा |
दिव्यं ददामि ते चक्षु: पश्य मे योगमैश्वरम् ||

पद पदार्थ

अनेन एव स्व चक्षुषा – तुम्हारी इन आँखों से
मां द्रष्टुं तु न शक्ष्यसे – तुम मुझे नहीं देख सकते
दिव्यं चक्षु:- दिव्य आँखें जो इन भौतिक आँखों से भिन्न हैं
ते ददामि – मैं तुम्हें दे रहा हूँ
(उन आँखों से)
मे ऐश्वरं योगं पश्य – तुम उन शुभ गुणों और धन को देख सकते हो, जो विशेष रूप से मुझ ईश्वर के पास उपस्थित हैं

सरल अनुवाद

तुम अपनी इन आँखों से मुझे नहीं देख सकते हो ।मैं तुम्हें इन भौतिक आँखों से भिन्न दिव्य आँखें दे रहा हूँ जिनसे तुम उन शुभ गुणों और धन को देख सकते हो जो विशेष रूप से मुझ ईश्वर में उपस्थित हैं।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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