श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्वज्ञानार्थदर्शनम् |
एतत् ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा ||
पद पदार्थ
अध्यात्म ज्ञान नित्यत्वम् – आत्मा के बारे में ज्ञान की खोज में सदैव लगे रहना
तत्त्व ज्ञानार्थ (दर्शनम्) चिंतनम् – सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए ध्यान करना
एतत् – ये बीस गुण (७ वें श्लोक से यहाँ तक देखे गए)
ज्ञानम् इति प्रोक्तम् – आत्मज्ञान प्राप्त करने के साधन कहा जाता है
यत् अत: अन्यथा – इनके अलावा अन्य सभी वस्तुएँ
अज्ञानम् – स्वयं के बारे में ज्ञान प्राप्त करने में बाधा हैं
सरल अनुवाद
… आत्मा के बारे में ज्ञान की खोज में सदैव लगे रहना, सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए ध्यान करना – (७ वें श्लोक से लेकर यहाँ तक देखे गए) ये बीस गुण,आत्मज्ञान प्राप्त करने के साधन कहा जाता हैं और इनके अलावा अन्य सभी वस्तुएँ स्वयं के बारे में ज्ञान प्राप्त करने में बाधा हैं।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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