श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृता : |
प्रसक्ता : कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ ||
पद पदार्थ
अनेक चित्त विभ्रान्ता: – विभिन्न विचारों से परेशान होकर
मोहजाल समावृता: – विभिन्न भ्रांतियों से घेरकर
काम भोगेषु – कामुक सुखों में
प्रसक्ता: – गहराई से संलग्न रहकर
(ऐसी स्थिति में मरने पर)
अशुचौ नरके पतन्ति – अस्वच्छ नरक लोकों में गिरते हैं
सरल अनुवाद
(राक्षसी लोग)विभिन्न विचारों से परेशान होकर , विभिन्न भ्रांतियों से घेरकर , कामुक सुखों में गहराई से संलग्न रहकर (ऐसी स्थिति में मरने पर) अस्वच्छ नरक लोकों में गिरते हैं|
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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