श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः।
सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते।।
पद पदार्थ
मुक्तसङ्ग: – कर्मफल की आसक्ति के बिना
अनहंवादी – “मैं कर्ता हूँ” इस अभिमान के बिना
धृति उत्साह समन्वितः – धृति अर्थात् अपरिहार्य दुःख को सहन करने की क्षमता के साथ, उत्साह अर्थात् कार्य करने के लिए उत्साहित
सिद्धि असिद्धि निर्विकारः – [अनुकूल/प्रतिकूल] परिणाम के प्रति उदासीन रहते हुए
कर्ता – जो कर्म करता है
सात्त्विक उच्यते – उसे सात्विक कर्त्ता कहा जाता है
सरल अनुवाद
जो कर्मफल की आसक्ति के बिना, “मैं कर्ता हूँ” इस अभिमान के बिना, धृति अर्थात् अपरिहार्य दुःख को सहन करने की क्षमता के साथ, उत्साह अर्थात् कार्य करने के लिए उत्साहित तथा [अनुकूल/प्रतिकूल] परिणाम के प्रति उदासीन रहते हुए कर्म करता है, उसे सात्विक कर्त्ता कहा जाता है।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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