२.११ – अशोच्यान्‌ अन्वशोचस्त्वं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

<<अध्याय २ श्लोक १०

श्लोक

श्री भगवानुवाच
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ॥

पद पदार्थ

श्री भगवानुवाच – भगवान ने कहा
त्वं – तुम ( अर्जुन )
अशोच्यान्‌ – जिनके बारे में चिंतित होना अनावश्यक हो
अन्वशोच: – परेशान हो रहे हो
प्रज्ञा वादां च – बुद्धिमत्ता से निकली ये भाषण
भाषसे – बात करते हो
पण्डिताः – समझदार लोग
गतासून्‌ – निर्जीवित शरीर पर
अगतासूं – जीवित आत्मा पर
न अनुशोचन्ति – चिंतित नहीं होते

सरल अनुवाद

कृष्ण ने कहा – तुम ( अर्जुन ) उन लोगों के बारे में चिंतित हो जिनके बारे में चिंतित होना अनावश्यक है ; तुम ऐसे बात करते हो जैसे बुद्धिमत्ता से निकली भाषण हो ; समझदार लोग न निर्जीवित शरीर पर चिंतित होते हैं न जीवित आत्मा पर |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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