२.१२ – न त्वेवाहं जातु नासं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

<<अध्याय २ श्लोक ११

श्लोक

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः ।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्‌ ॥

पद पदार्थ

अहम् – मैं ( सर्वेश्वर हूँ – सबका प्रभु )
जातु – ( भूतकाल में ) हमेशा
न आसं ( इति) न – ऐसा नहीं कि मैं नहीं था
त्वं – तुम भी ( जो जीवात्मा है – – आत्मा, चित)
( जातु नासी: इति ) न – ( भूतकाल में तुम नहीं थे ) यह असत्य है
इमे जनाधिपाः – ये सारे राजायें (जो जीवात्मा हैं – आत्मा, चित )
( जातु नासं इति ) न – (भूतकाल में ये सब नहीं थे ) यह भी असत्य है
सर्वे वयं – हम सब ( तुम , मैं और ये सारे राजायें )
अत: परम्‌ – भविष्यत् काल में
न भविष्यामः च एव (इति ) न – जीवित नहीं रहेंगे – यह भी असत्य है

सरल अनुवाद

भूतकाल में कभी ऐसा समय नहीं था जब मैं ( सर्वेश्वर – सबका प्रभु ), तुम (जीवात्मा – आत्मा, चित ) और ये सारे राजायें ( जीवात्मा – आत्मा, चित ) जीवित नहीं थे | भविष्यत् काल में भी ऐसा समय कभी नहीं रहेगा जब हम सब ( मैं, तुम और ये सारे राजायें ) जीवित नहीं रहेंगे |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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