श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः ।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्वदर्शिभिः ॥
पद पदार्थ
असत: – देह ( शरीर / वस्तु) जो विद्यमान न हो ( अस्थायी)
भाव: – नित्यता जो आत्मा (चित ) का लक्षण हो
न विद्यते – अनुपस्थित
सतः – आत्मा जो उपस्थित हो
अभाव – अचित वस्तुओं का अनित्य गुण
न विद्यते – अनुपस्थित
अनयो: – इन दोनों के बारे में – देह ( शरीर / वस्तु) और आत्मा (चित )
अंत: – का अंत
त्वदर्शिभिः – सच्चे ज्ञानी
दृष्ट: – (इस प्रकार) परिचित है
सरल अनुवाद
नित्यता जो आत्मा (चित ) का लक्षण है, वो देह ( शरीर / वस्तु) में अनुपस्थित है जो अस्थायी (अनित्य) कहा जाता है; अचित (वस्तु) का अनित्य गुण आत्मा में अनुपस्थित है जो नित्य कहा जाता है ; सच्चे ज्ञानी देह ( शरीर / वस्तु) और आत्मा (चित ) इन दोनों का अंत से , (इस प्रकार) परिचित है |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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