२. ३८ – सुख दुःखे समे कृत्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

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श्लोक

सुख दुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय  युज्यस्व नैवं पापं  अवाप्स्यसि ॥

पद पदार्थ

सुख दुःखे – सुख और दुःख 
समे  – समान
कृत्वा – सोचो
लाभालाभौ – वांछित वस्तुओं का लाभ और हानि (जो खुशी और शोक के कारण हैं)
जयाजयौ – जय और पराजय (जो लाभ और हानि के कारण हैं)
(समौ कृत्वा – उन्हें समान मानकर)
तता:– उसके बाद,
युद्धाय – लड़ने के लिए
युज्यस्व– तैयार हो जाओ 
एवं – अगर तुम  इस प्रकार लड़ते हो तो 
पापं  – संसार जो दुखों से भरा है
न अवाप्स्यसि – तुम प्राप्त नहीं करोगे

सरल अनुवाद

सुख-दुःख को समान समझो, वांछित वस्तुओं के लाभ-हानि (जो खुशी और शोक के कारण हैं) और जय-पराजय (जो लाभ-हानि के कारण हैं ) को समान समझो ;उसके बाद, यदि तुम युद्ध में (इस सोच के साथ) शामिल होते हो  , तो तुम दुखों से भरे संसार को प्राप्त नहीं करोगे | 

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी 

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