२.४ – कथं भीष्मम्‌

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

<<अध्याय २ श्लोक ३

श्लोक

अर्जुन उवाच
कथं भीष्ममहं सङ्‍ख्ये द्रोणं च मधुसूदन ।
इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन ॥

पद पदार्थ

अरिसूदन – हे दुश्मनों का विनाशी !
मधुसूदन – मधु नामक राक्षस का ध्वंसक !
अहम् – मैं
सङ्‍ख्ये – इस युद्ध मे
पूजार्हो – पूजनीय
भीष्मम्‌ – भीष्म पितामह
द्रोणं च प्रति = द्रोणाचार्य के प्रति
कथं – कैसे
योत्स्यामि – लड़ूँगा

सरल अनुवाद

हे दुश्मनों का विनाशी ! हे मधु नामक राक्षस का ध्वंसक ! पूजनीय भीष्म पितामह तथा गुरु द्रोणाचार्य के विरुद्ध मैं इस युद्धक्षेत्र मे कैसे लड़ूँगा ?

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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