श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति ।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ॥
पद पदार्थ
यदा – जब
बुद्धि: – तुम्हारा बुद्धि
मोह कलिलं – विपरीत ज्ञान से भ्रमित (गलतियां)
व्यतिरिष्यति – पार कर जाता है
तदा – उस समय
श्रुतस्य – उन परिणामों आदि ( जो समझाया गया) के प्रति (जिन्हे त्याग देना है )
श्रोतव्यस्य च – जो आगे बताया जायेगा
निर्वेदं गंधासि – तुम स्वयं ही घृणा करोगे
सरल अनुवाद
जब तुम्हारा बुद्धि विपरीत ज्ञान (गलतियां) के रूप के भ्रम को पार कर जाता है, तब , तुम स्वयं उन परिणामों आदि के प्रति घृणा करोगे ( जो समझाया गया और जिन्हे त्याग देना है ) और जो आगे समझाया जायेगा ।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी
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