२.५२ – यदा ते मोहकलिलं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

<< अध्याय २ श्लोक ५१

श्लोक

यदा ते मोहकलिलं  बुद्धिर्व्यतितरिष्यति ।
तदा गन्तासि निर्वेदं  श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ॥

पद पदार्थ

यदा  – जब
बुद्धि: – तुम्हारा बुद्धि
मोह कलिलं  – विपरीत ज्ञान से भ्रमित (गलतियां)
व्यतिरिष्यति  – पार कर जाता है
तदा – उस समय
श्रुतस्य – उन परिणामों आदि ( जो समझाया गया)  के प्रति (जिन्हे त्याग देना है )
श्रोतव्यस्य च – जो आगे बताया जायेगा
निर्वेदं गंधासि – तुम स्वयं ही घृणा करोगे 

सरल अनुवाद

जब तुम्हारा बुद्धि विपरीत ज्ञान (गलतियां) के रूप के भ्रम को पार कर जाता है, तब , तुम स्वयं उन परिणामों आदि के प्रति घृणा करोगे ( जो  समझाया गया और जिन्हे त्याग देना है ) और जो आगे समझाया जायेगा ।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

>> अध्याय २ श्लोक ५३

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/2-52/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org