२.६ – न चैतद् विद्मः कतरन् नो गरीय:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

<<अध्याय २ श्लोक ५

श्लोक

न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो यद्वा जयेम यदिवा नो जयेयुः ।
यानेव हत्वा न जिजीविषाम: तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः॥

पद पदार्थ

यद्वा जयेम – अगर हम उनपर विजय प्राप्त करेंगे
यदिवा न: जयेयुः – या वो हमपर विजय प्राप्त करेंगे
कतरत् न: गरीय: – ( इन दोनों में ) बेहतर क्या है
न विद्म: – हम परिचित नहीं हैं
(वयं – हम )
यान हत्वा – जिनको मारके
न जिजीविषाम: – जीवित रहने कि कोई अभिलाषा नहीं है
ते धार्तराष्ट्राः एव – वो दुर्योधन और बाकी सारे
प्रमुखे – हमारे सामने
अवस्थिताः – (युद्ध करने कि प्रेरणा से ) खड़े हैं

सरल अनुवाद

हमें इस बात का परिचय नहीं है कि हम उनपर विजय प्राप्त करेंगे या वो हमपर विजय प्राप्त करेंगे और इन दोनों में बेहतर क्या है | वो दुर्योधन और बाकी सारे, जिनको मारके हमें जीवित रहने कि कोई अभिलाषा नहीं है ( विजय के बाद ), हमारे सामने (युद्ध करने की प्रेरणा से ) खड़े हैं |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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