श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
रागद्वेश वियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन् ।
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति ॥
पद पदार्थ
रागद्वेश विमुक्तै: (वियुक्तै:) – इच्छा और द्वेष से मुक्त होकर (मेरी (कृष्ण की) कृपा से)
आत्मवश्यै: – स्वयं के वश में होना
इन्द्रियैः- इन्द्रियाँ
विषयान् – विषय वस्तु जैसे ध्वनि आदि
चरन् – लाँघना
विधेयात्मा – अपने मन को नियंत्रित किया हुआ मनुष्य
प्रसादम् – विचारों की स्पष्टता
अधिगच्छति – प्राप्त करता है
सरल अनुवाद
राग द्वेष (मेरी (कृष्ण की) कृपा से) दूर होकर, मन को वश में करने वाले इन्द्रियों से, ध्वनि आदि इन्द्रिय वस्तुवों को लाँघ कर, मन को नियंत्रित करने वाला मनुष्य, विचारों की स्पष्टता प्राप्त करता है।
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