३.१८ – नैव तस्य कृतेनार्थो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

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श्लोक

नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन ।
न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः ॥

पद पदार्थ

इह – आत्मा  ज्ञान की इस अवस्था में
तस्य – उसके लिए
कृतेन  – किये गये कर्मों से 
अर्थ: न – कोई परिणाम नहीं है
अकृतेन – उन कर्मों से जो नहीं किये गये
कश्चन (अनर्थ:) – बुरे  प्रभाव नहीं पड़ता है
अस्य – उसे
सर्व भूतेषु – सभी वस्तुओं में (जो प्रकृति का रूपांतर हैं)
अर्थव्यापश्रय:-आश्रित होने लायक 
कश्चित् – कुछ भी
न च (अस्ति) – नहीं है

सरल अनुवाद

जो व्यक्ति आत्मज्ञान की इस अवस्था में है, उसे , किये गये कर्मों से न तो कोई परिणाम है और न ही उस पर उन कर्मों का कोई दुष्प्रभाव पड़ता है जो उसने नहीं किये गये हैं। उसके लिए सभी वस्तुओं (जो प्रकृति का रूपांतर हैं) में निर्भर रहने लायक कुछ भी नहीं है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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