३.४ – न कर्मणाम् अनारम्भान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

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श्लोक

न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं  पुरुषोSश्नुते ।
न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति ॥

पद पदार्थ

पुरुष :- कोई भी मनुष्य (जो इस संसार में  है)
कर्मणां अनारम्भान् – कर्म योग शुरू करने के लगाव न होने के कारण 
नैष्कर्म्यम् – ज्ञान योग
न अश्नुते – प्राप्त नहीं कर पाएगा
संन्यसनात्  एव – त्यागने से भी  (कर्मयोग जो शुरू हुआ था)
सिद्धिं – ज्ञानयोग जो (कर्मयोग का) परिणाम है
न च समधिगच्छति – प्राप्त नही होगा

सरल अनुवाद

कोई भी मनुष्य (जो इस संसार में रहता है) कर्मयोग शुरू करने में लगाव न होने के कारण ज्ञानयोग प्राप्त नहीं कर पाएगा; और (जो प्रारम्भ किया गया कर्मयोग को ), त्याग देता है, उसे भी  ज्ञानयोग, (जो कर्मयोग का परिणाम है) प्राप्त नही होगा । 
(इसका तात्पर्य यह है कि जिसका मन अशांत हो ,वह, केवल कर्मयोग का,  जो सर्वोच्च भगवान की एक प्रकार की पूजा  है, पालन करने के बाद ही, उसकी मानसिक अशांति समाप्त होगी और वह उचित ज्ञान में स्थित होगा)।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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