१६.१६ – अनेकचित्तविभ्रान्ता
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १५ श्लोक अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृता : |प्रसक्ता : कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ || पद पदार्थ अनेक चित्त विभ्रान्ता: – विभिन्न विचारों से परेशान होकरमोहजाल समावृता: – विभिन्न भ्रांतियों से घेरकरकाम भोगेषु – कामुक सुखों मेंप्रसक्ता: – गहराई से संलग्न रहकर (ऐसी स्थिति … Read more