४.३५ – यत् ज्ञात्वा न पुनर्मोहम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३४ श्लोक यत्  ज्ञात्वा  न पुनर्मोहं  एवं यास्यसि पाण्डव ।येन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि ॥ पद पदार्थ यत् – वह ज्ञानज्ञात्वा – जानकर पुन: – फिरएवं – इस प्रकारमोहं – व्याकुलता (जैसे कि शरीर को आत्मा समझ लेना आदि)न यास्यसि – … Read more

४.३४ – तद्विध्दि प्रणिपातेन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३३ श्लोक तद्विध्दि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ।उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं  ज्ञानिनस्तत्वदर्शिनः ॥ पद पदार्थ प्रणिपातेन – उचित ढंग से प्रणाम करकेपरिप्रश्नेन – उचित दृष्टिकोण से प्रश्न पूछकरसेवया – सेवा करकेतत् – वह दिव्य ज्ञानविध्दि – जानना (ज्ञानियों से)तत्त्व दर्शिनः:- जिन्हें आत्म … Read more

४.३३ – श्रेयान् द्रव्यमयाद् यज्ञात्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३२ श्लोक श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञात् ज्ञानयज्ञ: परन्तप ।सर्वं  कर्माखिलं  पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते ॥ पद पदार्थ परन्तप  – हे शत्रुओं का नाश करने वाले!द्रव्य मयाद् – सामग्रियों  पर आधारित कार्यों को अधिक महत्व देना यज्ञात्  – कर्म योग से ज्ञान यज्ञ: – कर्म योग में  ज्ञान … Read more

४.३२ – एवं बहुविधा यज्ञा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३१ श्लोक एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे ।कर्मजान्विध्दि तान्सर्वानेवं  ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ॥ पद पदार्थ एवं – इस प्रकारबहुविधा: – अनेक प्रकार केयज्ञा: – कर्मयोगब्रह्मण: मुखे – कर्म योग में जो आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने का एक साधन हैवितता:- उपस्थित हैंतान् … Read more

४.३१ – नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३०.५ श्लोक नायं  लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्यः कुरुसत्तम ॥ पद पदार्थ कुरु सत्तम – हे कुरु वंश के वंशजों में श्रेष्ठ!अयज्ञस्य – जो नित्य/नैमित्तिक कर्म (दैनिक/विशिष्ट वैधिका गतिविधियों ) से रहित हैअयम लोक: न – सांसारिक लक्ष्य भी प्राप्त नहीं होतेअन्य: कुत: … Read more

४.३०.५ – यज्ञशिष्टामृतभुजो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३० श्लोक यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम् । पद पदार्थ यज्ञ शिष्टामृत भुज: – जो केवल यज्ञ के अवशेष खाते हैंसनातनम् – प्राचीनब्रह्म – आत्मा (स्वयं) का वास्तविक स्वरूप जिसमें आत्मा के रूप में ब्रह्म हैयान्ति – प्राप्त करना/एहसास करना सरल … Read more

४.३० – सर्वेऽप्येते यज्ञविदो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २९ श्लोक सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः ॥ पद पदार्थ एते सर्वे अपि – ये सभी कर्म योगी जो दैव  यज्ञ से लेकर प्राणायाम तक उपर्युक्त गतिविधियों में लगे हुए हैंयज्ञ विदा: – वे लोग जो नित्य नैमित्तिक कर्म (दैनिक और विशिष्ट … Read more

४.२९ – अपाने जुह्वति प्राणम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २८ श्लोक अपाने जुह्वति प्राणं  प्राणेSपानं  तथापरे ।प्राणापान गती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः ॥ अपरे नियताहाराः प्राणान्प्राणेषु जुह्वति । पद पदार्थ प्राणायामपरायणाः – जो लोग प्राणायाम पर ध्यान केंद्रित हैंनियताहाराः – नियमित भोजन आदतों के साथअपरे – कुछ कर्मयोगीअपाने प्राणं जुह्वति – … Read more

४.२८ – द्रव्यज्ञास् तपोयज्ञा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २७ श्लोक द्रव्यज्ञास्तपोयज्ञा  योगयज्ञास्तथापरे ।स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च यतयः संशितव्रताः ॥ पद पदार्थ यतय: – वे यति  (जो प्रयास करते हैं)संशितव्रताः – और दृढ़ संकल्प  के साथअपरे – कुछ कर्मयोगीद्रव्य यज्ञा: – धार्मिक तरीकों से अर्जित धन से दान के यज्ञ में व्यस्त रहते … Read more

४.२७ – सर्वाणीन्द्रियकर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २६ श्लोक सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे ।आत्मसंयमयोगाग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते ॥ पद पदार्थ अपरे – कुछ अन्य कर्मयोगीज्ञान दीपिते – ज्ञान द्वारा जलाए गए दीपक सेआत्म संयम योगग्नौ – मन पर नियंत्रण की अग्नि में, जो एक योग साधन है (योग का … Read more