२.२ – कुतस्त्वा कश्मलम्‌ इदं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

<<अध्याय २ श्लोक १

श्लोक

श्रीभगवानुवाच
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्‌।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन॥

पद पदार्थ

श्रीभगवानुवाच – भगवान ने कहा
अर्जुन – हे अर्जुन !
अनार्यजुष्टम्‌ – मूर्ख लोगों के द्वारा प्राप्त
अस्वर्ग्यम्‌ – जो स्वर्ग प्राप्ति को रोके
अकीर्तिकरम्‌ – जो जुगुप्सा का कारण बन जाए
इदं कश्मलम्‌ – यह शोक
विषमे – अनुचित स्थान पर
कुतः – क्यों
त्वा – तुम
समुपस्थितम्‌ – प्राप्त की

सरल अनुवाद

भगवान ने कहा – हे अर्जुन ! ऐसे अनधिकृत रिश्तेदारों पर क्यों तुम इस प्रकार की शोक प्राप्त कर ली है जो मूर्ख लोगों के द्वारा प्राप्त हो तथा जो स्वर्ग प्राप्ति को रोके और जो जुगुप्सा का कारण बन जाए ?

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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