२.९ – एवमुक्त्वा हृषीकेशं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

<<अध्याय २ श्लोक ८

श्लोक

संजय उवाच
एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप ।
न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह ॥

पद पदार्थ

संजय उवाच – संजय ने कहा
परन्तप: – जिसको देखके विरोधी डर से काँप उठे
गुडाकेशः – अर्जुन
हृषीकेशं – हृषीकेश से
एवम् उक्त्वा – इस प्रकार बोलकर

( अहम् – मैं )

न योत्स्यामी – युद्ध नहीं करूँगा
इति – इस प्रकार
गोविन्दम् उक्त्वा – गोविन्द ( कृष्ण ) से बोलकर
तूष्णीं बभूव – निशब्द रह गया

( यहाँ ह- अर्जुन के शोक को संकेत करता है )

सरल अनुवाद

संजय ने कहा – अर्जुन, जिसे देखके विरोधी डर से काँप उठते हैं, हृषीकेश से इस प्रकार कहने के बाद, गोविन्द (कृष्ण) से ” मैं युद्ध नहीं करूँगा ” यह बोलकर ( शोक से ) निशब्द रह गया |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय २ श्लोक १०

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