श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
तयोर्न वशमागच्छेत् तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ
पद पदार्थ
तयो: – प्रेम और क्रोध
वशं न आगच्छेत् – कोई भी वशीभूत नहीं होना चाहिए
तौ – वो प्रेम और क्रोध
अस्य – मुमुक्षु के लिए , जो कि ज्ञान योग का अनुयायी हो
परिपन्थिनौ हि – अपराजित शत्रु हैं
सरल अनुवाद
प्रेम और क्रोध से कोई भी वशीभूत नहीं होना चाहिए ; वो एक मुमुक्षु के लिए , जो कि ज्ञान योग का अनुयायी हो , अपराजित शत्रु हैं |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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