३.१९.५ – कर्मणैव हि सम्सिद्धिम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

<< अध्याय ३ श्लोक १९

श्लोक

कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः |

पद पदार्थ

जनकादयः:- जनक और अन्य
कर्मणा एव – केवल कर्म योग के माध्यम से (ज्ञान योग से नहीं)
संसिद्धिं  – आत्म-साक्षात्कार का परिणाम
अस्थिता: हि  – क्या उन्होंने प्राप्त नहीं किया है?  

सरल अनुवाद

क्या जनक आदि ने केवल कर्मयोग (न कि ज्ञानयोग) के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार का परिणाम प्राप्त नहीं किया है?

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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