५.१७ – तद्बुद्धय: तदात्मान:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

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श्लोक

तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणा: |
गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषा: ||

पद पदार्थ

तद्बुद्धय: – पहले बताये गए आत्मानुभूति में दृढ़ रूप से केंद्रित हो
तदात्मान: – उस आत्मानुभूति में मन को पूरी तरह से संलग्न करते हुए
तन्निष्ठा: – दृढ़ रूप से अनुचरण करते हुए
तत्परायणा: – उसी को सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य मानते हुए
ज्ञान निर्धूतकल्मषा: – इस आत्मानुभूति से अपने सारे पापों को विनाश करते हुए
अपुनरावृत्तिं – फिर से [ बंधन में ] लौट के न आने की उस स्थिति को , आत्मानुभूति में
गच्छन्ति – प्राप्त करते हैं

सरल अनुवाद

जो पहले बताये गए आत्मानुभूति में दृढ़ रूप से केंद्रित हो, उस आत्मानुभूति में मन को पूरी तरह से संलग्न करते हुए , दृढ़ रूप से अनुचरण करते हुए, उसी को सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य मानते हुए और इस आत्मानुभूति से अपने सारे पापों को विनाश करते हुए , फिर से [ बंधन में ] लौट के न आने की उस स्थिति को ,आत्मानुभूति में, प्राप्त करते हैं |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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