श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम् |
स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते ||
पद पदार्थ
य: – वह कर्म योगी
बाह्य स्पर्शेषु – बाहरी इन्द्रिय सुखों
असक्तात्मा – से स्वाधीन
आत्मनि – आत्मा में ( जो अन्तर्निवासित है )
सुखम् – आनंद
विन्दति – प्राप्त करता है
स: – वह
ब्रह्म योग युक्तात्मा – आत्मा पर ही ध्यान केंद्रित तपस्या करते हुए
अक्षयं सुखम – शाष्वतीय आनंद ( आत्म आनंद )
अश्नुते – प्राप्त करता है
सरल अनुवाद
वह कर्म योगी जो बाहरी इन्द्रिय सुखों से स्वाधीन है और जो आत्मा में ( जो अन्तर्निवासित है ) आनंद प्राप्त करता है, वह आत्मा पर ही ध्यान केंद्रित तपस्या करते हुए शाष्वतीय आनंद ( आत्म आनंद ) प्राप्त करता है |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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