४.३२ – एवं बहुविधा यज्ञा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

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श्लोक

एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे ।
कर्मजान्विध्दि तान्सर्वानेवं  ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ॥

पद पदार्थ

एवं – इस प्रकार
बहुविधा: – अनेक प्रकार के
यज्ञा: – कर्मयोग
ब्रह्मण: मुखे – कर्म योग में जो आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने का एक साधन है
वितता:- उपस्थित हैं
तान् सर्वान् – वे सभी कर्म योग
कर्मजान् – नित्य/नैमित्तिक कर्म से उत्पन्न
विध्दि – उसे जानो
एवं- इस प्रकार
ज्ञात्वा – इसे जानने और अभ्यास करने से
विमोक्ष्यसे – संसार से मुक्त हो जाओगे

सरल अनुवाद

इस प्रकार, कर्मयोग में कई प्रकार के कर्मयोग उपलब्ध हैं जो आत्म-साक्षात्कार का एक साधन है। जानो कि वे सभी कर्मयोग नित्य/नैमित्तिक कर्म से उत्पन्न होते हैं। इसे जानने और अभ्यास करने से, संसार से मुक्त हो जाओगे।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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