श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् |
धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ||
पद पदार्थ
भरतर्षभ – हे भरत वंशजों में श्रेष्ठ!
अहम् – मैं
बलवतां – बलवान का
काम राग विवर्जितं बलम् (अस्मि) – वह शक्ति हूँ जो उन्हें वासना से दूर रखती है
भूतेषु – सभी प्राणियों में
धर्माविरुद्ध: – धर्म के साथ निर्विरोध (सदाचार)
काम: अस्मि – मैं अभिलाषा हूँ
सरल अनुवाद
हे भरत वंशजों में श्रेष्ठ! मैं बलवानों की वह शक्ति हूँ जो उन्हें वासना से दूर रखती है । मैं वह अभिलाषा हूँ जो सभी प्राणियों में धर्म के साथ निर्विरोध (सदाचार) है ।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/7-11/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org