७.१३ – त्रिभि: गुणमयै: भावै:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ७

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श्लोक

त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत् |
मोहितं नाभिजानाती मामेभ्य : परमव्ययम्  ||

पद पदार्थ

सर्वं इदं जगत् – इस संसार में सभी जीवात्माएँ
एभि: त्रिभि: गुणमयै: भावै: – इन तीन गुणों (सत्व, रज, तम) से युक्त वस्तुओं द्वारा
मोहितं – भ्रमित
एभ्य: परं – इनसे श्रेष्ठ
अव्ययं – सदैव अपरिवर्तित
मां – मैं
न अभिजानति – नहीं जानता

सरल अनुवाद

इस संसार में सभी जीवात्मा इन तीन गुणों (सत्व, रज, तम) से युक्त वस्तुओं से भ्रमित होकर, इनसे श्रेष्ठ और सदैव अपरिवर्तनीय मुझे, नहीं जानते।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुजदासी

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