श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
प्रयाणकाले मनसाऽचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव ।
भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥
पद पदार्थ
भक्त्या युक्त: – भक्ति के साथ
योगबलेन – ऐसे भक्ति योग की शक्ति से
अचलेन मनसा – उस हृदय से जो तुच्छ सुखों का पीछा नहीं करे
प्रयाण काले – अंतिम क्षणों में, मृत्यु के समय
भ्रुवो: मध्ये प्राणम् आवेश्य – प्राणवायु को भौहों के बीच में धारण किये
य: जो भी
दिव्यं परं पुरुषं – उस दिव्य परम प्रभु का
सम्यक् अनुस्मरेत् – भली प्रकार ध्यान करता है
स: – वह
तं एव – उसी परम पुरुष को
उपैति – प्राप्त करता है ( इसका तात्पर्य है कि वह उस परमपुरुष के समान संपत्ति प्राप्त करता है )
सरल अनुवाद
…जो कोई भी भक्ति के साथ, ऐसे भक्ति योग की शक्ति से और उस हृदय से जो तुच्छ सुखों का पीछा नहीं करे , अंतिम क्षणों में, मृत्यु के समय, प्राणवायु को भौहों के बीच में धारण किये , उस दिव्य परम प्रभु का ही भली प्रकार ध्यान करता है, वह उसी परम पुरुष को प्राप्त करता है ( इसका तात्पर्य है कि वह उस परमपुरुष के समान संपत्ति प्राप्त करता है )
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/8-10/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org