१८.१८ – ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

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श्लोक

ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना।
करणं कर्म कर्तेति त्रिविधः कर्मसंग्रहः।।

पद पदार्थ

कर्म चोदना – कर्म के सम्बन्ध में वेद के नियम (अनुष्ठानात्मक पूजाएँ जैसे कि ज्योतिष्टोम आदि)
ज्ञानं – ज्ञान (कर्म के बारे में)
ज्ञेयं – जो कर्म किया जाना है
परिज्ञाता – जो (ऐसे कर्म) जानता है
त्रिविधा – तीन कारक हैं
कर्म संग्रहः – कर्म के कारक (जो कि मध्य में हैं)
करणं – सामग्री आदि (जो कि कर्म के साधन हैं)
कर्म – कर्म (जैसे कि यज्ञ आदि)
कर्ता इति – कर्म करने वाला
त्रिविधः – तीन हैं

सरल अनुवाद

कर्म के सम्बन्ध में वेद के नियम (अनुष्ठानात्मक पूजाएँ जैसे कि ज्योतिष्टोम आदि) में ज्ञान (कर्म के बारे में), जो कर्म किया जाना है और जो (ऐसे कर्म) जानता है; [इसके अतिरिक्त ] कर्म के कारक (जो कि मध्य में हैं) तीन हैं – सामग्री आदि (जो कि कर्म के साधन हैं), कर्म (जैसे कि यज्ञ आदि) और कर्म करने वाला।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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