१.४१ – अधर्माभिभवात् कृष्ण

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १

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श्लोक

अधर्माभिभवात् कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः ।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्कर: ৷৷

पद पदार्थ

वार्ष्णेय कृष्ण ! – हे कृष्ण ( वृष्णि वंश में जनित) !
अधर्माभिभवात् – जब अधर्म एक वंश को घेर लेता है
कुलस्त्रियः – उस कुल के स्त्रियां
प्रदुष्यन्ति – भ्रष्ट हो जाते हैं
स्त्रीषु दुष्टासु – जब कुल के स्त्रियां भ्रष्ट हो जाते हैं
वर्णसङ्कर: – वर्णों में परस्पर मिश्रण
जायते – हो जाता है

सरल अनुवाद

हे कृष्ण ( वृष्णि वंश में जनित) ! जब अधर्म एक वंश को घेर लेता है ,तब उस कुल के स्त्रियां भ्रष्ट हो जाते हैं | जब कुल के स्त्रियां भ्रष्ट हो जाते हैं तो वर्णों में परस्पर मिश्रण हो जाता है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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