१०.८ – अहं सर्वस्य प्रभवो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १०

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श्लोक

अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते ।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ॥

पद पदार्थ

अहं – मैं
सर्वस्य – संपूर्ण जगत का
प्रभव: – मूल
मत्तः – मुझसे ही
सर्वं – सभी सत्ताएँ
प्रवर्तते – संचालित होती हैं
इति – मेरी इस नैसर्गिक निर्भार सम्पदा तथा शुभ गुणों
मत्वा – पर ध्यान करते हुए
बुधा – विद्वान
भाव समन्विताः – बड़े प्रेम से
मां – मेरी (जो सभी शुभ गुणों से भरपूर हूँ )
भजन्ते – पूजा करते हैं

सरल अनुवाद

मैं ही संपूर्ण जगत का मूल हूँ और सभी सत्ताएँ मुझसे ही संचालित होती हैं |मेरी इस नैसर्गिक निर्भार सम्पदा तथा शुभ गुणों पर ध्यान करते हुए, विद्वान बड़े प्रेम से मेरी पूजा करते हैं |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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