श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी |
विविक्तदेशसेवित्वम् अरतिर्जनसंसदि ||
पद पदार्थ
मयि – मुझमें, जो सर्वेश्वर हूँ
अनन्य योगेन – किसी अन्य के साथ संलग्न न होने के कारण
अव्यभिचारिणी – अत्यंत दृढ़ स्थिति
भक्ति: च – भक्ति
विविक्त देश सेवित्वम् – एकांत में रहना
जन संसदि अरति:- भीड़ में रहना पसंद नहीं
सरल अनुवाद
…किसी अन्य के साथ संलग्न न होने के कारण, मेरे प्रति, जो सर्वेश्वर हूँ, भक्ति की अत्यंत दृढ़ स्थिति होना, एकांत में रहना, भीड़ में रहना पसंद न करना…..
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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