श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
सर्वत: पाणिपादं तत् सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् |
सर्वतश्श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ||
पद पदार्थ
तत् – वह शुद्ध आत्मा
सर्वत: पाणिपादं – हाथों और पैरों की सभी गतिविधियाँ कर सकता है
सर्वतोऽक्षि शिरो मुखम् – आँखों, सिर और चेहरे की सभी गतिविधियाँ कर सकता है
सर्वत: श्रुति मत् – कानों की सभी गतिविधियों को हर जगह कर सकता है
लोके – संसार की
सर्वं – सभी सत्ताओं में
आवृत्य तिष्ठति – व्याप्त है
सरल अनुवाद
वह शुद्ध आत्मा, हाथों और पैरों, आंखों, सिर, चेहरे और कानों की सभी गतिविधियों को हर जगह कर सकता है; वह संसार की सभी सत्ताओं में व्याप्त है।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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