श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
असक्तिरनभिष्वङ्ग: पुत्रदारगृहादिषु |
नित्यं च समचित्तत्वम् इष्टानिष्टोपपत्तिषु ||
पद पदार्थ
असक्ति: – आसक्ति न रखना (आत्मा के अलावा अन्य विषयों में)
पुत्र दार गृहादिषु – पत्नी, बच्चों, घर आदि के प्रति
अनभिष्वङ्ग: – आसक्ति से मुक्त रहना
इष्ट अनिष्ट उपपत्तिषु – वांछनीय या अवांछनीय वस्तुओं की प्राप्ति होने पर
नित्यम् – सदैव
समचित्तत्वम् च – प्रसन्न या निराश न होते हुए मन को स्थिर रखना
सरल अनुवाद
…आसक्ति न रखना (आत्मा के अलावा अन्य विषयों में) , पत्नी, बच्चों, घर आदि के प्रति आसक्ति से मुक्त रहना, वांछनीय या अवांछनीय वस्तुओं की प्राप्ति पर प्रसन्न या निराश न होते हुए सदैव मन को स्थिर रखना…
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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