१४.१० – रज: तम: चाभिभूय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १४

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श्लोक

रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत।
रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा।।

पद पदार्थ

भारत – हे भारतवंशी!

(शरीर के तीन गुणों में)
रज: तम: च अभिभूय- रजोगुण और तमोगुण पर हावी होकर
सत्त्वं भवति – (कभी-कभी) सत्व गुण प्रबल होता है
सत्त्वं तम: च (अभिभूय) – सत्व गुण और तमो गुण पर हावी होकर
रजः एव (भवति) – (कभी-कभी) केवल रजो गुण ही प्रबल होता है
रजः सत्त्वं तथा तथा (अभिभूय) – उसी प्रकार रजो गुण और सत्व गुण पर हावी होकर
तम: एव (भवति) – (कभी-कभी) तमस प्रबल होता है

सरल अनुवाद

हे भारतवंशी! (शरीर के तीन गुणों में) रजोगुण और तमोगुण पर हावी होकर, (कभी-कभी) सत्व गुण प्रबल होता है; सत्व गुण और तमो गुण पर हावी होकर (कभी-कभी) केवल रजो गुण ही प्रबल होता है ; उसी प्रकार रजो गुण और सत्व गुण पर हावी होकर (कभी-कभी) तमस प्रबल होता है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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