१४.१२ – लोभः प्रवृत्तिरारम्भः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १४

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श्लोक

लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा।
रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ।।

पद पदार्थ

भरतर्षभ – हे भरत के वंशजों में सर्वोत्तम!
लोभः – कृपणता
प्रवृत्ति: – व्यर्थ कार्य
कर्मणाम् आरम्भ: – विशेष रूप से लक्ष्य पर केन्द्रित होकर कार्य आरम्भ करना
अशमः – इन्द्रियों पर नियंत्रण न करना
स्पृहा – सांसारिक सुखों की इच्छा
एतानि – ये सब
रजसि विवृद्धे – जब रजो गुण का उदय होता है
जायन्ते – उत्पन्न होती है

सरल अनुवाद

हे भरत के वंशजों में सर्वोत्तम! जब रजो गुण का उदय होता है, तब कृपणता, व्यर्थ कार्य, विशेष रूप से लक्ष्य पर केन्द्रित होकर कार्य आरम्भ करना, इन्द्रियों पर नियंत्रण न करना तथा सांसारिक सुखों की इच्छा उत्पन्न होती है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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