श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
अर्जुन उवाच
कैर् लिंगैस्त्रिगुणान् एतान् अतीतो भवति प्रभो |
किमाचार: कथं चैतांस्त्रीन् गुणान् अतिवर्तते ||
पद पदार्थ
अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहा
प्रभो! – मेरे नाथ!
एतान् त्रिगुणान् अतीत: – जो इन तीन गुणों से परे है
कै: लिंगै: भवति – उसकी आंतरिक पहचान क्या है?
किम् आचार: (भवति) – उसका बाहरी आचरण क्या है?
एतान् त्रीन् गुणान् च – ये तीन गुणों को
कथम् अतिवर्तते – वह कैसे पार होता है?
सरल अनुवाद
अर्जुन ने कहा -मेरे नाथ! जो इन तीन गुणों से परे है उसकी आंतरिक पहचान और बाहरी आचरण क्या हैं? वह इन तीन गुणों को कैसे पार होता है?
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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