१६.१४ – असौ मया हत: शत्रुर्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १६

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श्लोक

असौ मया हत: शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि |
ईश्वरोऽहमहं  भोगी सिद्धोऽहं  बलवान्सुखी ||

पद पदार्थ

मया – मेरे द्वारा (जो बहुत शक्तिशाली है)
असौ शत्रु:- यह (मेरा) शत्रु
हत:- मारा गया है;
अपरान् अपि च (शत्रून्) – और कई अन्य शत्रुओं को
हनिषये – (मैं जो वीर हूँ) हत्या कर दूँगा
अहम् ईश्वर: – मैं अपनी क्षमता से सभी को नियंत्रित करता हूँ
अहं भोगी – मैं (अपनी क्षमता से )हर वस्तु का भोक्ता हूँ;
अहं सिद्ध: – मैं (अपनी क्षमता से )सर्व समर्थ हूँ;
(अहं) बलवान् – मैं ((स्वाभाविक रूप से) शक्तिशाली हूँ;
(अहं) सुखी – मैं (स्वाभाविक रूप से) आनंदित हूँ

सरल अनुवाद

यह (मेरा) शत्रु ,मेरे  द्वारा (जो बहुत शक्तिशाली है) मारा गया है ; और कई अन्य शत्रुओं को (मैं जो वीर हूँ) हत्या कर दूँगा ; मैं अपनी क्षमता से सभी को नियंत्रित करता हूँ; मैं (अपनी क्षमता से )हर वस्तु  का भोक्ता हूँ; मैं (अपनी क्षमता से ) सर्व समर्थ हूँ; मैं  (स्वाभाविक रूप से) शक्तिशाली हूँ; मैं (स्वाभाविक रूप से) आनंदित हूँ…..

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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