श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
अभिसन्धाय तु फलं दम्भार्थं अपि चैव य: |
इज्यते भरतश्रेष्ठ तं यज्ञं विद्धि राजसम् ||
पद पदार्थ
भरत श्रेष्ठ – हे भरत वंशजों में श्रेष्ठ!
फलम् अभिसन्धाय तु – भौतिक लाभ की इच्छा से
दम्भार्थं अपि च एव – केवल दिखावे के लिए
य: इज्यते – जो यज्ञ किया जाता है
तं यज्ञम् – वह यज्ञ
राजसं विद्धि – इसे राजस यज्ञ (रजोगुण में यज्ञ ) के रूप में जानो
सरल अनुवाद
हे भरत वंशजों में श्रेष्ठ! जो यज्ञ भौतिक लाभ की इच्छा से तथा केवल दिखावे के लिए किया जाता है, उसे राजस यज्ञ (रजोगुण में यज्ञ ) के रूप में जानो |
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/17-12/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org