१८.१४ – अधिष्ठानं तथा कर्ता

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

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श्लोक

अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम्।
विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम्।।

पद पदार्थ

अधिष्ठानं – शरीर
तथा कर्ता – आत्मा
पृथक् विधं करणं च – कर्मेन्द्रिय (मन सहित पाँच क्षमताएँ)
विविधा: पृथक् चेष्टा च – इसी प्रकार प्राण (प्राणवायु) जिसके पाँच विभिन्न कार्य हैं
अत्र – कर्मों के कारणों में
पञ्चमं दैवं च एव – पाँचवाँ तथा सबसे महत्वपूर्ण कारण, परमात्मा

सरल अनुवाद

शरीर, आत्मा, कर्मेन्द्रिय (मन सहित पाँच क्षमताएँ), इसी प्रकार प्राण (प्राणवायु) जिसके पाँच विभिन्न कार्य हैं और कर्मों के कारणों में पाँचवाँ तथा सबसे महत्वपूर्ण कारण, परमात्मा,

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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