श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये।
बन्धं मोक्षं च या वेत्ति बुद्धिः सा पार्थ सात्त्विकी।।
पद पदार्थ
पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!
प्रवृत्तिं च – सांसारिक धन के साधनरूपी धर्ममय कर्मों
निवृत्तिं च – मोक्ष के साधनरूपी धर्ममय कर्मों
कार्य अकार्ये – क्या करें और क्या न करें (उन लोगों के लिए जो इन साधनों पर ध्यान केंद्रित हैं)
भय अभये – भय और अभय का निवास
बन्धं मोक्षं च – संसार में बंधे होने और उससे मुक्त होने की सत्य
या वेत्ति – जो ज्ञान विवेक करता है
सा बुद्धिः सात्त्विकी – वह ज्ञान सत्वगुण से बना है
सरल अनुवाद
हे कुन्तीपुत्र! जो ज्ञान सांसारिक धन के साधनरूपी धर्ममय कर्मों तथा मोक्ष के साधनरूपी धर्ममय कर्मों का विवेक करता है, क्या करें और क्या न करें (उन लोगों के लिए जो इन साधनों पर ध्यान केंद्रित हैं), भय और अभय का निवास और संसार में बंधे होने और उससे मुक्त होने की सत्य को समझता है, वह ज्ञान सत्वगुण से बना है ।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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