५.११ – कायेन मनसा बुद्ध्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

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श्लोक

कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि ।
योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये ॥

पद पदार्थ

योगिन: – कर्म योगी
सङ्गं – स्वर्ग आदि के प्रति लगाव
त्यक्त्वा – त्याग करके
आत्म शुद्धये – आत्मा से प्राचीन कर्मों (पुण्य / पाप ) से छुटकारा पाने और शुद्ध होने के लिए
कायेन – शरीर के साथ
मनसा – मन के साथ
बुद्ध्या – बुद्धि के साथ
केवलै: – ममकार से मुक्त (अपना मानना)
इंद्रियै: अपि – और इंद्रियों के साथ
कर्म – कर्म
कुर्वन्ति –  करते हैं

सरल अनुवाद

कर्मयोगी, स्वर्ग आदि के प्रति आसक्ति छोड़कर, आत्मा  से  प्राचीन कर्मों (पुण्य/पाप) से छुटकारा पाने और शुद्ध  होने  के लिए  शरीर, मन, बुद्धि और  ममकार (स्वयं को अपना मानना) से मुक्त हुए इंद्रियों से कर्म करते हैं | 

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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