५.१२ – युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

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श्लोक

युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् ।
अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते ॥

पद पदार्थ

युक्तः – जो अन्य मामलों में इच्छा के बिना आत्मा पर ध्यान केंद्रित है
कर्म फलं – कर्मों का परिणाम जैसे स्वर्गलोक पहुँचना आदि
त्यक्त्वा – त्याग करके 
(ऐसी क्रियाओं का अभ्यास करके)
नैष्ठिकीम् – शाश्वत
शान्तिम् – आत्मा का  आनंद लेने के रूप में आनंद
आप्नोति – प्राप्त करता है
अयुक्त: – जो अन्य मामलों में लगा हुआ है और आत्मा पर ध्यान केंद्रित नही है
कामकारेण – इंद्रियों की वस्तुओं जैसे ध्वनि आदि के माध्यम से वासना के संबंध में प्रयास
फले – कर्मों का परिणाम जैसे स्वर्गलोक पहुँचना आदि से 
सक्तः – संलग्न
(ऐसी क्रियाओं का अभ्यास करके)
निबद्यते – एक संसारी (बंधी हुई आत्मा) बन जाता है

सरल अनुवाद

जो व्यक्ति अन्य मामलों में इच्छा किए बिना आत्मा पर ध्यान केंद्रित है, कर्म के परिणाम जैसे स्वर्गलोक पहुँचना आदि को छोड़कर, (ऐसे कार्यों का अभ्यास करके)  वह आत्मा  का आनंद लेने के रूप में शाश्वत आनंद प्राप्त करता है । जो अन्य मामलों में लगा हुआ है और आत्मा पर ध्यान केंद्रित नही है, इंद्रियों की वस्तुओं, जैसे ध्वनि आदि के माध्यम से वासना के संबंध में प्रयास करता है, कर्म के परिणामों (जैसे स्वर्गलोक पहुँचना आदि) में संलग्न होता है,  (ऐसे कर्मों का अभ्यास करके),वह संसारी ( बंधी हुई आत्मा) बन जाता है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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