५.१३ – सर्वकर्माणि मनसा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

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श्लोक

सर्वकर्माणि मनसा सन्यस्यास्ते सुखं  वशी ।
नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन् न कारयन् ॥

पद पदार्थ

देही – अवतरित
वशी – आत्मा जो (स्वाभाविक रूप से) अपने नियंत्रण में है
नव द्वारे – शरीर के नौ द्वार वाले शहर में
सर्व कर्माणि – सभी कर्म
मनसा – मानसिक रूप से
सन्यस्य – पूरी तरह से त्याग करना
नैव कुर्वन – न तो स्वयं कर रहा है
न कारयन् – न ही शरीर के माध्यम से करना
सुखं अस्ते – सुख से रहता है

सरल अनुवाद

आत्मा, जो (स्वाभाविक रूप से) अपने नियंत्रण में है, [लेकिन ] शरीर के नौ द्वार वाले शहर में बंधित है, मानसिक रूप से सभी कार्यों को पूरी तरह से छोड़ देता है, न तो स्वयं कुछ करता है और न ही शरीर के माध्यम से करता है, खुशी से रहता है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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