५.२ – सन्यासः कर्मयोगश् च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

<< अध्याय ५ श्लोक  १

श्लोक

श्री भगवान् उवाच
सन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ ।
तयोस्तु कर्मसन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ॥

पद पदार्थ

श्री भगवान् उवाच – श्री भगवान बोले
सन्यास: – ज्ञान योग
कर्म योग: च – और कर्म योग
उभौ – दोनों
नि: श्रेयसकरौ – स्वतंत्र रूप से आत्म-साक्षात्कार का सर्वोत्तम परिणाम प्रदान करेंगे 
(फिर भी)
तयो:- उन दोनों में से
कर्म सन्यासात् – ज्ञान योग से भी अधिक
कर्म योग: तु  – केवल कर्म योग
विशिष्यते – (कुछ कारणों से) का अधिक महत्व है

सरल अनुवाद

श्री भगवान बोले, ज्ञान योग और कर्म योग दोनों स्वतंत्र रूप से आत्म-साक्षात्कार का सर्वोत्तम परिणाम प्रदान करेंगे। फिर भी, उन दोनों में से ज्ञानयोग से अधिक (कुछ कारणों से) कर्मयोग ही महत्वपूर्ण है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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