श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
श्री भगवान् उवाच
सन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ ।
तयोस्तु कर्मसन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ॥
पद पदार्थ
श्री भगवान् उवाच – श्री भगवान बोले
सन्यास: – ज्ञान योग
कर्म योग: च – और कर्म योग
उभौ – दोनों
नि: श्रेयसकरौ – स्वतंत्र रूप से आत्म-साक्षात्कार का सर्वोत्तम परिणाम प्रदान करेंगे
(फिर भी)
तयो:- उन दोनों में से
कर्म सन्यासात् – ज्ञान योग से भी अधिक
कर्म योग: तु – केवल कर्म योग
विशिष्यते – (कुछ कारणों से) का अधिक महत्व है
सरल अनुवाद
श्री भगवान बोले, ज्ञान योग और कर्म योग दोनों स्वतंत्र रूप से आत्म-साक्षात्कार का सर्वोत्तम परिणाम प्रदान करेंगे। फिर भी, उन दोनों में से ज्ञानयोग से अधिक (कुछ कारणों से) कर्मयोग ही महत्वपूर्ण है।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी
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