५.२२ – ये हि संस्पर्शजा भोगा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

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श्लोक

ये हि संस्पर्शजा भोगा दु:ख योनय एव ते |
आद्यन्तवन्त: कौन्तेय न तेषु रमते बुध: ||

पद पदार्थ

कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र !
ये संस्पर्शजा भोगा – उन विषयासक्त आनंद जो ज्ञानेन्द्रियों का इन्द्रिय वस्तुओं के संपर्क से होता है
ते – वे
दु:ख योनय एव हि – केवल दुःख के कारण
आदि अंतवन्त: ( हि ) – उनका प्रारम्भ और अंत है
बुध: – जो भी उनके गुण को जानते हैं
तेषु – उनमे
न रमते – व्यस्त नहीं रहेंगे

सरल अनुवाद

हे कुन्तीपुत्र ! उन विषयासक्त आनंद जो ज्ञानेन्द्रियों का इन्द्रिय वस्तुओं के संपर्क से होता है , वे केवल दुःख के कारण होते हैं ; उनका प्रारम्भ और अंत होता है ; जो भी उनके गुण को जानते हैं , उनमे व्यस्त नहीं रहेंगे |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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