५.२३ – शक्नोतीहैव य: सोढुं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

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श्लोक

शक्नोतीहैव य: सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् |
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्त: स सुखी नर: ||

पद पदार्थ

शरीर विमोक्षणात् प्राक् – शरीर को त्यागने से पहले
इह एव – इस वर्तमान समय में ही ( अर्थात साधन अभ्यास करने की इस अवस्था में ही )
काम क्रोध उद्भवं वेगं – लोभ और क्रोध से पैदा होने वाली राग ( मन, तन और वाणी में )
य: – वो कर्म योगी
सोढुं शक्नोती – जो सहन कर सकता है
स: नर: – वही व्यक्ति
युक्त: – आत्मानंद प्राप्त करने योग्य है
स: सुखी – वही आत्मानंद प्राप्त करता है ( शरीर को त्यागने के बाद )

सरल अनुवाद

वो कर्म योगी जो लोभ और क्रोध से पैदा होने वाली राग ( मन, तन और वाणी में ) को इस वर्तमान समय में ही ( अर्थात साधन अभ्यास करने की इस अवस्था में ही ) शरीर को त्यागने से पहले सहन कर सकता है , वही व्यक्ति आत्मानंद प्राप्त करने योग्य है और वही ( शरीर को त्यागने के बाद ) आत्मानंद प्राप्त करता है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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