५.२९ – भोक्तारं यज्ञतपसां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

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श्लोक

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् ।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥

पद पदार्थ

यज्ञतपसां भोक्तारं – वो जो यज्ञ और तपस को स्वीकार करते हैं
सर्व लोक महेश्वरं – सभी लोकों के सर्वेश्वर
सर्वभूतानां सुहृदं – सभी जीवों के मित्र
मां – मुझे
ज्ञात्वा – जानकार
शान्तिम् ऋच्छति – शान्ति प्राप्त करता है

सरल अनुवाद

मुझे यज्ञ और तपस को स्वीकार करने वाले के रूप में जानकर, सभी लोकों के सर्वेश्वर और सभी जीवों के मित्र के रूप में जानकर, वह ( ऐसा कर्म योगी ) शान्ति प्राप्त करता है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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