५.७ – योगयुक्तो विशुध्दात्मा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ५

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श्लोक

योगयुक्तो विशुध्दात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः।
सर्वभूतात्म भूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ॥

पद पदार्थ

योग युक्त: – कर्म योग का अभ्यासी 
विशुद्धात्मा – (उसके परिणाम स्वरूप) शुद्ध हृदय से 
विजितात्मा – (उसके परिणाम स्वरूप) नियंत्रित मन से 
जितेन्द्रिय: – (उसके परिणाम स्वरूप) सभी इंद्रियों पर नियंत्रण रखकर
सर्व भूतात्म भूतात्मा – जो आत्मा सभी आत्माओं (देवताओं, प्राणियों, मनुष्यों आदि) को अपने आत्मा के रूप में देखता है
कुर्वन् अपि – सभी कार्य करते समय
न लिप्यते – शरीर को स्वयं के रूप में समझने आदि भ्रम से बंधा नहीं है

सरल अनुवाद

जो कर्मयोग का अभ्यासी है, (उसके परिणाम स्वरूप) जिसका हृदय  शुद्ध है, (उसके परिणाम स्वरूप) जिसका मन नियंत्रित है, जो (उसके परिणाम स्वरूप) सभी इंद्रियों पर नियंत्रण रखता है, जो सभी गतिविधियों को करते समय सभी आत्माओं (देवताओं प्राणियों, मनुष्यों आदि) को अपने आत्मा के रूप में देखता है, वह शरीर को स्वयं के रूप में समझने आदि भ्रम से बंधा नहीं है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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